वो दिन गए…a Nostalgia !

Nostalgia

छुट्टी मांगा, घुट्टी मिली

”किसी को कंपनी की फिक्र ही नहीं है, हर कोई छुट्टी चाहता है, कंपनी चाहे चूल्हे-भाड़ में जाए. हर कोई लेट आता है……..@#$%^^^@(@*@” ये उद्गार थे मेरे आउटपुट हेड…सॉरी डिप्टी आउटपुट हेड के….या कहूं शिफ्ट इंचार्ज के……दरअसल उनकी पदवी क्या है, ये ऑफिस में कुछ ही लोगों को पता है….हैरत की बात तो ये भी है वो खुद भी कई बार इस बात को लेकर असमंजस में पड़ जाते हैं…खैर, उनकी कहानी फिर कभी…फिलहाल वो अपनी कुर्सी पर इत्मीनान और रौब से बैठे थे…रौब दिखाने का मौका जो मिला था…उनके सामने दो-दो भिखारी छुट्टी का कटोरा लिए खड़े थे..ऐसा केवल वो समझ रहे थे…उन दो लोगों में मैं भी एक था…मुझे छुट्टी चाहिए थी 21 से 29 दिसंबर तक..10 दिन की छुट्टी। पहले छुट्टी पर जाने का प्लान 5 से 12 था…लेकिन लेट होते-होते…21 तक खिसक गया था। वजहें कईं थीं लेकिन बताने लायक वजह यही है कि कई सहकर्मियों की काली नजर मेरी छुट्टियों पर थी..और एक-एक कर वे मेरी छुट्टियों पर डाका डालते जा रहे थे। मुझसे पहले जिस बंदे ने छुट्टी की अर्जी दी..उन महाशय को 11 से 19 तक 10 दिन की छुट्टी चाहिए थी। बॉस की भौंहें टेढ़ी हुईं…”10 दिन की छुट्टी ?!!!….इतनी नहीं मिल सकती…कम करो और ये क्या…ये कैसा रीजन हुआ, अस्थमा…अरे, भई, अस्थमा का दौरा पड़ता है..पहले से ही थोड़े ही पता होता है…जाओ कोई रीजन लिख के लाओ..”…मेरा नंबर उनके बाद था, लेकिन बीच में न जाने कहां से कुणाल नामक चैप्टर बीच में आ गया। ”अरे…वो….कुणाल आया कि नहीं…” मतलब था- ‘कुणाल हाजिर हों’..”कुणाल, दो दिन से कहां थे,…” …”सर, परसों तो मेरा वीकली ऑफ था..और कल कानपुर चला गया था..बहुत जरू……..”.”ठीक है, लेकिन बता के तो जाते..”..”सर, मेरा फोन बंद हो गया…”..”.ये ठीक नहीं है कुणाल, बिना बताए कैसे चले गए….पता है तुम्हारे अलावा एक और आदमी छुट्टी पर था..इस तरह दो लोग बिना बताए एक साथ छुट्टी पर चले गए…इसका मतलब जानते हो..तुम्हारे ये कंपनी को नुकसान पहंचाने का आरोप लग सकता है, समझे।…………..मैं हाथ में छुट्टी का अप्लीकेशन लिए खड़ा था। थोड़ा डर भी लगने लगा था कि कुणाल का गुस्सा मुझ पर न निकल जाए, लेकिन अंदर ही अंदर मैं अपनी छुट्टी को लेकर आश्वस्त था क्योंकि मैं 6 महीने के बाद छुट्टी ले रहा था..वो भी साल के आखिर में….खैर, मैं हमले के बचाव के लिए अपने हथियारों से लैस था।…और हमला हुआ…”अरे क्या मिथिलेश…इयर इंड में कहां जा रहे हो…..अब अगले साल छुट्टी लेना, जनवरी में चले जाना, ठीक है…तुम तो छुट्टी पर गए थे….” तड़ातड़ एके 56 से गोलियां निकल रही थीं…लेकिन सबको छकाते हुए मैंने ग्रेनेड दाग ही दिया…(इस पंक्ति से आगे लिखने में 20 दिन लग गए….उसकी अलग ही कहानी है..वो फिर कभी..)..”नहीं सर, मुझे छुट्टी पर गए तो 6 महीने हो गए, जुलाई में गया था..”..”अच्छा तब तो चले जाओ, लेकिन 10 दिन के लिए नहीं, 7 दिन के लिए, 19 से 25..ठीक है..” ”…….@#$*$&$!@..ठीक है सर…” मैंने एप्लीकेशन नए सिरे से भरा, उसमें 21 से 29 की बजाय 19 से 25 की डेट डाली और उनके आगे कर दिया चिड़िया बैठाने के लिए…और उन्होंने एक छोटी-सा गिद्ध बैठा भी दिया, मेरी छुट्टियों पर जो रह-रहकर इस ताक में रहता कि कब इसकी छुट्टियां खत्म हों, और वो टूट पड़े।….साथ ही उन्होंने ये भी कह दिया..”अभी ये एप्लीकेशन लेकर ऊपर सीईओ के पास मत जाना, एक ही दिन कई हो जाएगा…” ”ठीक है….(तेरी तो….)” उसके बाद तो जैसे उनका रहमो-करम टूट पड़ा मुझ पर, जब तक मैं छुट्टी पर गया नहीं तब तक वो लगभग रोज यही पूछते, ”मिथिलेश, छुट्टी से आ गए ना…”….अब छुट्टी किसतरह मेरे लिए गले में अटकी हड्डी बन गई,फिर कभी….

जनवरी 15, 2009 - Posted by | इंडिया न्यूज का इंडिया टीवी से कोई संबंध नहीं |

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